Teachings of lord Chaitanya adhyay 1



रूप गोस्वामी और वल्लभ भगवान चैतन्य के दर्शन के लिए प्रयाग पहुँचे। उन्होंने भगवान के नृत्य, कीर्तन और उनके अद्भुत प्रभाव को देखा। भगवान ने उन्हें अपनी अहैतुकी कृपा से स्वीकार किया, गले लगाया और भक्ति का गूढ़ विज्ञान सिखाया ताकि रूप गोस्वामी बाद में इसे संसार में फैलाएँ।

भगवान ने उन्हें समझाया कि जीव अनादि काल से संसार में भटकता है, पर अत्यंत दुर्लभ है वह जीव जिसे गुरु और कृष्ण की कृपा से भक्ति का बीज मिलता है। यह बीज जप, श्रवण और सत्संग से सींचने पर धीरे-धीरे बढ़ता है और आध्यात्मिक जगत—गोलोक वृंदावन—तक पहुँच जाता है। लेकिन पाप, अपराध, वैष्णव-अपमान और भौतिक इच्छाओं के खरपतवार इस पौधे को नष्ट भी कर सकते हैं। इसलिए भक्त को सावधानियों के साथ भक्ति करनी चाहिए।

भगवान चैतन्य ने समझाया कि भक्ति का मार्ग दुर्लभ है—मनुष्य लाखों जीवों में बहुत कम मिलता है, और भक्त करोड़ों मनुष्यों में। भक्ति का विकास श्रद्धा से शुरू होकर रुचि, आसक्ति, भाव और अंत में प्रेम तक पहुँचता है। प्रेम के भीतर पाँच दिव्य संबंध विकसित होते हैं—शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य और मधुर—और मधुर भाव सबसे ऊँचा है, जैसा वृंदावन में गोपियों का प्रेम।

भगवान ने बताया कि उनके नाम का जप अत्यन्त शक्तिशाली है, लेकिन नाम-जप में दस अपराध बहुत घातक हैं, विशेषतः वैष्णव-अपराध, जिसे पागल हाथी का अपराध कहा गया है। यह भक्ति को जड़ से नष्ट कर देता है। इसलिए भक्त को सदैव विनम्र, शुद्ध और सावधान रहना चाहिए।

परम सत्य यह है कि भगवान के प्रति प्रेम हर जीव में सुप्त है। वही प्रेम भक्तों की कृपा से जागृत होता है। भगवान चैतन्य स्वयं उसी प्रेम को बाँटने आए—यही उन्हें सबसे दयालु अवतार बनाता है।

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